Sunday, February 7, 2016

DeshBhakt

देश भक्त होने पर 
मुझे नाज़ हैं,
येह बोल्ने का 
सब्का अपना अंदाज़ हैं...
कहिन बोल्ति हैं गलिया  
तोह कहिन रास्ते बे-अवाज़ हैं,
इन् इमार्तो मैं दबे
ना जाने कित्ने राज़ हैं...
पुराना क़िला वहि 
वहि क़ुतुब मिनार अबाद हैं,
लाल क़िले के औदे 
और ताज महल कि रंगत का अपना अलग हि राज़ हैं...
बेहति गंगा वहि 
पर यमुना अब भि नपाक हैं,
बनि इमार्ते कई लम्बि मगर
हिमाल्या कि बुलंदि आज भि मुम्ताज़ हैं...
देश भक्त होने पर 
मुझे नाज़ हैं,
येह बोल्ने का
सब्का अपना अंदाज़ हैं

हिंदु  हैं
मुसल्मान हैं.
सिख हैं,
हैं इसाई भि
यहा मिल्ता हर्र धर्म को इस्थान हैं,

होति गुर्बानि, किर्तन और अज़ान भि
धर्म के नाम पर मच्ता यहा कोह्राम हैं...
केह्ने को देश मेरा धर्म निर्पेक्श्ता मैं महान है

फिर क्यु नाम इस्के मर्ता इंसान हैं

जो कर्दे तुम्हे शर्मिंदा, करो उस्स संत्रि का तुम सम्मन 
पेह्नो येह रंग संत्रि, ना दो हम्को ग्यान,
तुम बोलोगे तो फसोगे
चिल्लओगे तो मरोगे
यहा चल्ता चक्र हो अशोक का
उप्पर सिंघ के हैं कमल बल्वान,
इतिहास भले ना हो इस्का,
एतिहासिक किये हैं इस् कमल ने काम.
निक्लि जब जब संघ कि हक़् के लिये
दबाइ इस्ने वोह अवाज़ हैं

देश भक्त होने पर
मुझे नाज़ हैं
येह बोल्ने का
सब्का अपना अंदाज़ हैं...

जंतब्त्र कि फौज से
आंदोलन कि नीद्द से,
सत्य कि सचाई से
झूत कि गेह्राई से,
मुखौतो के प्रदर्शन से
गुलाबि रंग से,
छात्रो के संघ से
ज़ख्मि प्रदर्श्नियो के अंग से,
हक़ कि पुकार से
परिवर्तन कि यल्गार से
चीर दे जो दीवार को
वोह अवाज़ सुनाति एक राज़ हैं


देश भक्त होने पर
मुझे नाज़ हैं,
येह बोल्ने का
सब्का अपना अंदाज़ हैं...

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