Monday, March 21, 2016

क्यु हैं यह दूरिया !

फास्ले ना सहि, ना सहि दिलो कि मज्बूरिया
ना समझ का फेर कहिन, ना रिश्तो कि कम्ज़ोरिय,
हैं सुंसान विराना सा, सब कुछ
खामोशियो का घराना सा, सब कुछ,
बेचेनि सि यहा हैं, बेबसि सि यहा हैं
ना देता किसि काम को यह दिल मन्ज़ुरिया
आखिर! क्यु हैं यह दुरिय?


एक दौर था वोह भि जब हम मुस्कुराते थे
साथ मे उन्के युन हि चले जाते थे,
रास्ता अंजान लगता, वक़्त मेहरबान लगता
दिल मे होति बेचेनि सि, जब हाथो मे हाथ उन्का होता,
येह एह्सास जिस्ने दिल को छुआ हैं
एक अलग हि सुकून हम्को दिया हैं,

क्या यहि थि शुरुआत इस अंत कि?

एक खुब्सुरत मुलाकात का एक हसीन किस्सा ना सहि
उस्स पाकीज़ा मोहोबत्त कि जाज़ीब ना सहि,
किसी किनारे तोह इस कशति को ले जाते
युन्हि तन्हा इस माझि को ना छोड़ आते,
यह कैसा सितम हम्को दिया हैं
क्यु बेवजा तन्हा छोड़ किया  हैं,

याद हैं वोह लम्हा जब कानो मे मेरे तुम गुंगुनाया करती थी?

तुम नग्मे गुंगुनाया करती थी
मिस्रि सी बन मेरे कानो मे घुल्ल जाया करती थी,
कस्मे, वादे, लम्हे और मुलाकाते
इन सबकी बाते कर जाति,
अगर ना रोको तो युन्हि बोल्ति चलि जाती...
उन नग्मो कि बसाई मेंने एक अलग दुनिया हैं
तुम नही हो साथ, क्युंकि यह दुरिया हैं.

 आंखो मे लिये शरारते घुम्ति
गालो की सुर्खिया आस्मान चूम्ति,
ज़ुल्फो की घनि छाओ बाद्लो सी
लबो की लालिया मानो करती इस हुस्न को फाज़िल,
हैं खुर्रम आज भी मोहोबत्त की गलिया
फिर क्यु हैं यह दुरिय?

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